कितना आसान है
पसंद-नापसंद करना
आज कुछ
तो कल कुछ कहना
कौन टिका है
अपने मूल्यों पर आख़िर
ढाई आख़र में
फिर वो वजन ही कहाँ है?
है प्यार अलग
और रिश्ता अलग
रिश्तों में बंध कर
वो रहता नहीं है
बदलना है शाश्वत
और बदलते सभी हैं
तुम भी बदलोगे
ये सोचा न था
जब उतरती है शाम
होता है कुछ-कुछ
ग़लत मत समझना
ये प्यार नहीं है
अच्छा हुआ
मैं बीमार हो गया
दूध का दूध
और पानी का पानी हो गया
राहुल उपाध्याय । 11 जनवरी 2022 । सिएटल
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