माना है हर किसी को उसने हबीब है
देखा नहीं है आज तक, रहता क़रीब है
अपने ही मन की बात है, अपने ही हाथ है
कोई नहीं है कहीं जो लिखता नसीब है
आशिक़ की आशिक़ी भी क्या ख़ूब है जनाब
आँखों से दिल की बात हो कितना अजीब है
यादों को अपने साथ जो रखता है जोड़ के
कैसे कहूँ वो आदमी ख़ुशनसीब है
राहुल उपाध्याय । 4 जनवरी 2022 । सिएटल
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