पहले माँ गईं
और आज पेड़
इंसान का शरीर
एक मशीन की तरह है
हज़ार अंजर-पंजर है
कब क्या बिगड़ जाए
एक उम्र के बाद
कुछ कह नहीं सकते
प्राण छूट जाते हैं
ढाँचा बिखर जाता है
और न चाहते हुए भी
उसे राख करना पड़ता है
पेड़?
क्या इसकी भी पाचन क्रिया शिथिल हो गई थी?
क्या इसे भी भूख नहीं लगती थी?
क्या इसे भी पानी पीते ही उल्टी हो जाती थी?
यदि नहीं
तो क्या यह किसी के लिए कोई अड़चन था?
किसी के आशियाने पर तूफ़ान में गिर कर उन्हें तबाह कर सकता था?
इसके सामने तो मैं ही रहता हूँ
क्या इसे इसीलिए काट कर बुरादा कर दिया गया कि मैं चैन की नींद सो सकूँ?
राहुल उपाध्याय । 18 जनवरी 2022 । सिएटल
5 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (२०-०१ -२०२२ ) को
'नवजात अर्चियाँ'(चर्चा अंक-४३१५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत सुन्दर रचना
अति संवेदनशील सृजन ।
बहुत ही भावपूर्ण रचना
गहन हृदय को स्पर्श करते भाव।
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