Tuesday, January 11, 2022

शीशा टूटा

शीशा टूटा

और हम दो से तीन हुए


जितना टूटा

उतना बिखरा

उतना पनपा


मैं और मेरे अक्स

काफ़ी हैं

आज़ादी का जश्न मनाने के लिए

ग़ुलामी की बू मिटाने के लिए

अकेलेपन का दर्द सहने के लिए

जेलर की उपस्थिति मिस करने के लिए 


आज़ादी की क़ीमत 

सिर्फ़ भगत सिंह ही नहीं चुकाते हैं 

कई बार 

ख़ुद को भी दाँव पर लगाना पड़ता है 


राहुल उपाध्याय । 11 जनवरी 2022 । सिएटल 




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