Friday, October 14, 2022

6 अक्टूबर

6 अक्टूबर 

आकर चला गया

और मुझे तनिक भी 

पता न चला कि उस दिन 

मम्मी को गुज़रे 14 महीने हो गए थे


सब कुछ सामान्य हो गया है 

अति सामान्य 


नई गतिविधियों ने जन्म ले लिया हैं

ऐसा भी नहीं है 


जीवन पूर्ववत ही है

लेकिन अब उनके कमरे में जाने पर

धड़कन नहीं बढ़ती

भावुक नहीं होता

आँखें नम नहीं होतीं


कमरा वैसा ही है जैसा था

वही पलंग 

वही टीवी

वही रिमोट

वही साइड टेबल

कुछ भी नहीं बदला 

फिर भी ये मुझे विचलित नहीं करते

वैसे ही निष्प्राण थे

अब और पत्थर हो गए हैं 


कुछ तो हो

जो मुझे रूलाए (1)

उनकी याद दिलाए


तुलसी में पानी बिना नागा किए

रोज़ देता हूँ 

वे भी फल-फूल रही हैं 

मम्मी की ज़रूरत किसी को नहीं है 


मम्मी की किसी को पड़ी नहीं है 


राहुल उपाध्याय । 14 अक्टूबर 2022 । सिएटल


(1-जो किसी ने नहीं किया, इस कविता ने कर दिया)




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