जंजाल है ये दुनिया
सुख-दुख न बराबर हैं
कहने को जीवन है
पर मरते यहाँ पर हैं
मिलता न कोई हमदम
सुनसान नज़ारे हैं
पनघट न बचा कोई
मरघट ही हमारे हैं
हर साँस उम्मीदों के
बस मिटते आखर हैं
दो दिन की दुनिया में
संताप हज़ारों हैं
आगे न कोई पीछे
पर पाप हज़ारों हैं
करना भी जो कुछ चाहूँ
डर रहते सदा सर हैं
राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2022 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment