Wednesday, October 19, 2022

मिला थी जब तुम कल रात तो

मिली थी जब तुम कल रात तो

क्या आई थी याद उन रातों की?

जब तारों के नीचे हम साथ थे

झंझावात से नहीं जज़्बात थे

सहज, सरल, करते बात थे

न इधर का डर था

न उधर का भय

मिलने को रहते बेताब थे

ग़लत-शलत वो जो भी था

लगता नहीं हमें ग़लत वो था


कल तुम तप रही थी इतनी ज़ोर से

कि मैं भाँप रहा था इस छोर से

पास नहीं तुम आ रही थी 

दूर से ही तुम जा रही थी

सबको किया तो मुझे भी किया 

मेरे लिए कोई दुआ-सलाम न था

डम्ब शरेड में भी तुमने भाग लिया

मेरा क्लू न कोई सॉल्व किया 


इतना तो है कि तुम मुझे भूली नहीं 

भूल सकी नहीं कि भुलाना चाहा नहीं 

मालूम पड़े तो कुछ चैन पड़े


मिली थी जब तुम कल रात तो …


राहुल उपाध्याय । 19 अक्टूबर 2022 । सिएटल 







इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


0 comments: