एक साल पहले
जो तुमने शर्ट प्रेस की थी
वो मैंने आज पहनी
इतने दिनों से
मैं बस उसे देखता था
देखता था कि तुम उसे कैसे
देख रही थी
पानी के छींटे मारकर
उसकी सिलवटें मिटा रही थी
तुमने कभी शर्ट पर प्रेस नहीं की थी
मैंने ही तुम्हें गुर सिखाए थे
पहले कॉलर
फिर कंधे
फिर बाँहें
फिर पीठ
बाद में जो बच गया वो सब कुछ
तुम बहुत लालायित थी मेरे सारे काम करने को
मैं तो स्वावलंबी हूँ
सारे काम अपने आप करना अच्छा लगता है
और तुम हठ करती थी
कितने प्यार से खीरे-टमाटर काटती थी
अखरोट भी याद से भिगो देती थी
मेरी सारी सीमित ज़रूरतों का ध्यान रखती थी
जो अल्हड़ थी
किचन से दूर रहती थी
जिसे काम न करने के दस बहाने आते थे
कैसे मेरे लिए सब कुछ करने को उतावली रहती थी
मैं देखता था उसे
और देखता था तुम्हें
मैं छूता था उसे
और छूता था तुम्हें
तुम्हारे मोती से दांत
ज़ुल्फ़ों के पेंच
खनकती हँसी
सब कुछ, सब कुछ
मेरे सामने होते थे
सोचता था
पहन लिया तो
तुमसे रिश्ता ख़त्म हो जाएगा
फ़ोन तो बंद हो ही गए हैं
शर्ट पहना तो लगा
तुम्हें ओढ़ लिया
शर्ट पर सिलवटें पड़ गईं
अब वो वॉशर में है
बैसाखी हटा ली है
राहुल उपाध्याय । 17 अक्टूबर 2022 । सिएटल
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