जब भी जमाता हूँ दही
रात को
मम्मी याद आती हैं
जब भी निकालता हूँ दाने
अनार से
सास याद आती हैं
जब भी पकाता हूँ बैंगन
रसीले
मामीसाब याद आते हैं
जब भी सुनाता हूँ वाक़ये
मज़ाक़िये
मामासाब याद आते हैं
दिन भर यादों का ताँता लगा रहता है
क्या अगली पीढ़ी को
यूट्यूब
और सिर्फ़ यूट्यूब ही याद आएगा
शायद नहीं
अभी भी कुछ चीज़ें हैं
जिन्हें सिर्फ़ इंसान से ही इंसान
सीखता है
सीख सकता है
और सीख रहा है
लेकिन
न वो माँ होगी, न सास
न मामासाब होंगे, न मामीसाब
होंगे
तो पड़ोसी
या कोई आया
तो कोई बॉस
तो कोई सहकर्मी
रिश्ते होंगे
नाम के
पर किसी काम के नहीं
राहुल उपाध्याय । 10 अक्टूबर 2020 । सिएटल
0 comments:
Post a Comment