Monday, October 10, 2022

जब भी जमाता हूँ दही

जब भी जमाता हूँ दही

रात को

मम्मी याद आती हैं


जब भी निकालता हूँ दाने 

अनार से

सास याद आती हैं


जब भी पकाता हूँ बैंगन 

रसीले

मामीसाब याद आते हैं 


जब भी सुनाता हूँ वाक़ये 

मज़ाक़िये

मामासाब याद आते हैं 


दिन भर यादों का ताँता लगा रहता है 


क्या अगली पीढ़ी को

यूट्यूब 

और सिर्फ़ यूट्यूब ही याद आएगा 


शायद नहीं 


अभी भी कुछ चीज़ें हैं

जिन्हें सिर्फ़ इंसान से ही इंसान

सीखता है 

सीख सकता है 

और सीख रहा है 


लेकिन 

न वो माँ होगी, न सास 

न मामासाब होंगे, न मामीसाब 


होंगे

तो पड़ोसी 

या कोई आया

तो कोई बॉस

तो कोई सहकर्मी 


रिश्ते होंगे 

नाम के

पर किसी काम के नहीं 


राहुल उपाध्याय । 10 अक्टूबर 2020 । सिएटल 





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