जिसकी राहों में आँखें बिछाती हो
जिसको अपना, अपना बताती हो
वो न आएगा, आएगा, आएगा
झूठी-मूठी क्यों आस बढ़ाती हो
तब कहाँ थे, कहाँ थे ये जलवे तेरे
तब कहाँ थीं, कहाँ थीं अदाएं तेरी
जब वो तन्हा था, भूखा था, प्यासा था
तब न दी थी उसे तूने बाँहें तेरी
अब न वो हाल, ना वो नज़ारे है
बदले-बदले से सारे नज़ारे हैं
न है तू पाक, ना ही इरादे हैं
तू है इस पार, वो उस किनारे हैं
तेरे दामन पे दाग न आँच कोई
तेरे मन में मगर एक बड़ी प्यास है
तू न पाएगी, न पाएगी बुझा उसे
तेरा दुख ही तेरी अब हर साँस है
राहुल उपाध्याय । 16 दिसम्बर 2022 । दिल्ली
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