हाँ आजकल मन मेरा दिलशाद है
दुख बिना, सुख बिना जीवन बर्बाद है
जीने के हैं दिन चार ये जी लेंगे हम मगर
जीए न किसी की चाह में तो हैं ये इक ज़हर
जली थी कभी आग तो जल गए थे शहर
जले न कभी आग तो चल सकेगा न घर
जहाँ भी जहां में जाऊँ मैं, पाई है इक लहर
जीने की है जिनमें चाह वो जी रहे हर पहर
राहुल उपाध्याय । 8 दिसम्बर 2022 । गुरुग्राम
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