हर किसी का चाँद हो
यह ज़रूरी नहीं
बुध और शुक्र के यहाँ
अकाल है
शनि के एक नहीं
पचास हैं
और यह भी ज़रूरी नहीं कि
वो उपग्रह हो
किसी से कमतर हो
धरती का एक ही चाँद है
लेकिन धरती पर
अनगिनत चाँद हैं
सब अपने ही नूर से रोशन
किसी के मोहताज नहीं
वे चाँद है कि नहीं
यह जानने के लिए
किसी टेलीस्कोप की ज़रूरत नहीं
बस चाँद चाँद होते हैं
ऐसे कई चाँद हैं
जिनसे मैं मिला नहीं
जिन्हें मैंने देखा नहीं
सिर्फ़ बातें की हैं
वे चाँद हैं कि नहीं
यह उनके व्यवहार से
लहजे से
प्यार से
दिख जाता है
जैसे चाँद सुकून देता है
वैसे ही वे भी सुकून देते हैं
जब भी मैं मिलूँगा
आर्मस्ट्रांग की तरह नहीं
गले लगा कर मिलूँगा
राहुल उपाध्याय । 7 दिसम्बर 2022 । दिल्ली
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