साँस रोज़ चल रही
रोज़ दिन उग रहा
ज़िन्दगी, अरे तेरा
शुक्रिया, शुक्रिया
कितने दीप जल रहे
सब्ज़ बाग मिल रहे
ये नहीं है सुख तो क्या
यही तो हैं
हर तरफ़ बहार है
हर तरफ़ नूर है
ये नहीं है सुख तो क्या
यही तो हैं
हर तरफ़ खुशी का बस
चल रहा है कारवाँ
ज़िन्दगी, अरे तेरा
शुक्रिया, शुक्रिया
शूल-धूल जहाँ भी हैं
गुल हज़ार खिल रहे
ये नहीं है स्वर्ग तो क्या
यही तो है
मीत प्यार के यहाँ
गली-गली हैं मिल रहे
ये नहीं है स्वर्ग तो क्या
यही तो है
आसपास में हमें
प्रेम-प्यार मिल गया
ज़िन्दगी, अरे तेरा
शुक्रिया, शुक्रिया
जहाँ भी इश्क़ है जवाँ
वहाँ हसीं है समाँ
ये नहीं है सच तो क्या
यही तो है
जहां भी प्रेम-प्यार है
वहाँ भला है दुख कहाँ
ये नहीं है सच तो क्या
यही तो है
कहीं भी दुख का कोई
एक तार ना रहा
ज़िन्दगी, अरे तेरा
शुक्रिया, शुक्रिया
राहुल उपाध्याय । 31 दिसम्बर 2022 । लखनऊ
1 comments:
बहुत सुन्दर
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