साथ हँसे और साथ में रोए
नार हो ऐसी तो बाँह गहे
सुबह को जब हम नींद से जागे
अधरों पे मुस्कान धरे
ढूँढा हज़ारों में, ढूँढा सितारों में
कहीं ना एक मिली
साँवली सूरत, मोहिनी मूरत
हज़ारों-हज़ार मिलीं
दिल ने जो चाहा, दिल ने न पाया
कई-कई दिन और रात कटे
अब तो है सोचा कि खाएँगे धोखा जो
कुछ दिन और जीएँ
मान लेंगे उसी को अपना वो हमदम जो
कुछ देर साथ चले
शक़ और शुबहा साथ में मेरे
पल-पल साथ पले
आखरी पल के आखरी ख़्वाब हैं ये
कोई तो गले लगा ले
बाँहों में भर के वो प्यार भर दे
कि हो जाए अनगिनत सवेरे
होगा कभी ये, होगा ज़रूर ये
ऐसे भी दिल के तार बजे
राहुल उपाध्याय । 31 मार्च 2023 । सिएटल