हम हैं वो निराले
पा के जो निवाले
कर ले उसकी ग़ुलामी
साध ले चुप्पी सारे
प्यार-मोहब्बत के वादे
सुनते हम रोज़ आए
सच जो होंगे कभी ना
फिर भी सुनते ही जाए
है सभी कुछ जहां में
ज़ुल्म भी, दुख भी है
क्या करे जब कोई
हार कर ही सुखी है
अब तो बर्बादियों का
एक ताँता लगा है
जिसने जो कहना चाहा
उल्टा उसपे पड़ा है
राहुल उपाध्याय । 30 मार्च 2023 । सिएटल
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