गरीब पे खा के तरस ओ जाना
बनांओ न बातें दूर रहो न हमसे
के जुदाई के दिन अब सहे न जाए
लगा लो मुझको गले से अपने
ज़ुल्फ़ से लम्बी हैं विरह की रातें
जीवन से छोटे मिलन के दिन हैं
जीऊँ तो कैसे, किस कर मैं जीऊँ
ये रातें लम्बी, ये दिन हैं छोटे
हज़ार दुखों से ये दिल भरा है
हज़ार बातों पे ये रो रहा है
किसे पड़ी है जो मेरी सोचे
जा के सुनांए तुम्हें मेरी बातें
के जैसी जलती हुई शमा हूँ
के जैसे उठता हुआ धुआँ हूँ
न चैन आए कहीं से मुझको
न करार तुम्हारा ख़त जो दे दे
क़सम हमारे मिलन दिवस की
कभी न प्यार हम तुमसे करते
जो पहले जानते जो आज पता है
के तुम भी हमको धोखा दोगे
राहुल उपाध्याय । 6 मार्च 2023 । सिएटल
यह रचना अमीर खुसरो की इस प्रसिद्ध ग़ज़ल पर आधारित है।
इस ग़ज़ल के पहले शेर की पहली पंक्ति का हिस्सा लेकर गुलज़ार ने ग़ुलामी फिल्म का यह गीत लिखा था।
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