Tuesday, March 28, 2023

दूर कहीं पे है वो बैठी

दूर कहीं पे है वो बैठी

करती चिंता दिन भर है

पास जो होती आज वो मेरे

पूछ ही लेता क्यूँ कर है


प्यार वो करती इतना मुझसे 

डरती नहीं वो इक पल है

खिलखिल-खिलखिल हँसती इतना

चंचल एकदम निश्छल है


गीत कभी जो भाए उसको

दिन भर घर भर गाती है 

बिन सुनाए मुझको उसको

नींद नहीं भी आती है 


इतनी अच्छी, इतनी सच्ची 

प्रीत का मैं हक़दार कहाँ 

कौन है जिसका शुक्र करूँ मैं

कौन वो दिलदार यहाँ 


दिन भर बैठे-बैठे सोचूँ 

क्या ये महज़ इक सपना है 

वो है उज्ज्वल पाक सरिता

क्यूँ मुझे उसे गहना है


हाथों से जब हाथ मिले तो

क्या ये बुझती प्यास है

प्यास बुझे या बुझे ना

मिलने की इक आस है


राहुल उपाध्याय । 28 मार्च 2023 । सिएटल 



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