दूर कहीं पे है वो बैठी
करती चिंता दिन भर है
पास जो होती आज वो मेरे
पूछ ही लेता क्यूँ कर है
प्यार वो करती इतना मुझसे
डरती नहीं वो इक पल है
खिलखिल-खिलखिल हँसती इतना
चंचल एकदम निश्छल है
गीत कभी जो भाए उसको
दिन भर घर भर गाती है
बिन सुनाए मुझको उसको
नींद नहीं भी आती है
इतनी अच्छी, इतनी सच्ची
प्रीत का मैं हक़दार कहाँ
कौन है जिसका शुक्र करूँ मैं
कौन वो दिलदार यहाँ
दिन भर बैठे-बैठे सोचूँ
क्या ये महज़ इक सपना है
वो है उज्ज्वल पाक सरिता
क्यूँ मुझे उसे गहना है
हाथों से जब हाथ मिले तो
क्या ये बुझती प्यास है
प्यास बुझे या बुझे ना
मिलने की इक आस है
राहुल उपाध्याय । 28 मार्च 2023 । सिएटल
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