ये बैंक भी डूबी, वो बैंक भी डूबी
खबर कौनसी जो नहीं है बुरी
बैंकें कमज़ोर इतनी हो जाएँगीं
सबको भरमाएँगी, सबको बहकाएँगी
किसने था ये कब सोचा
खाएँगे इक दिन हम धोखा
डरते-डरते हुए अब दिन जाएँगे
जाने कैसे कहाँ हम जी पाएँगे
कल की बात ख़ुदा जाने
हम आज फँसे हैं हम जानें
सारे उनको बुरा-भला कहते हैं
जिनकी कल तक ख़ुशामद करते थे
फूट गया भांडा सारा
तब लोग कहे कच्चा गारा
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 14 मार्च 2023 । सिएटल
1 comments:
सामयिक हालातों पर सटीक सृजन
वाह!!!
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