मैं बूढ़ा हो रहा हूँ
यह बताते हैं वो लोग जो
मेट्रो में मेरे लिए सीट छोड़ देते हैं
परिजन जो मेरा सामान उठा लेते हैं
और मैं हूँ कि
अपने बूढ़ेपन से अनभिज्ञ हूँ
अभी भी थिएटर में पहले दिन पहला शो देखता हूँ
दिन भर गाने सुनता हूँ
फ़ोन से चिपका रहता हूँ
सोशियल मीडिया पे पोस्ट करता हूँ
आईसक्रीम बेहिसाब खाता हूँ
टेबल टेनिस भी खेल लेता हूँ
आठ किलोमीटर रोज़ चलता हूँ
क्या बदला है पिछले तीस सालों में?
कुछ भी तो नहीं
मेरे चेहरे पर झुर्रियाँ ज़रूर होँगी
मेरे सर पर बाल कम हो गए होंगे
ये सब मुझे नहीं दिखते
अच्छा ही है हमारी आँखें हमें नहीं देख सकतीं
और आईना जो दिखाता है वो कौन याद रखता है?
राहुल उपाध्याय । 19 मार्च 2023 । सिएटल
2 comments:
बूढ़े होने का दर्द बूढ़ा होने वाला ही समझ सकता है। दिल को छू लेने वाली रचना ।।आदरणीय ।
आपका ब्लाग मेरे परम मित्र अखिल स्नेही के माध्यम से प्राप्त । सुंदर रचनाये आप दोनों का आभार ।।
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