जाने क्यूँ लोग वो काम किया करते हैं
चैन न दे कर के जो दुख दिया करते हैं
तकलीफ़ मिलती है, आराम नहीं मिलता
वर्षों की मेहनत का कोई परिणाम नहीं मिलता
दिल टूट जाता है, नाकाम होता है
करिअर में लोगों का यही अन्जाम होता है
कोई क्या जाने, क्यों ये परवाने,
क्यों मचलते हैं, ग़म में जलते हैं
आहें भर-भर के दीवाने जिया करते हैं
रिव्यू में लोगों को कितना रुलाते हैं
बजट में नहीं पैसा तंगी बताते हैं
ये ज़िन्दगी यूँ ही बरबाद होती है
हर वक़्त होंठों पे कोई फ़रियाद होती है
ना दवाओं का नाम चलता है
ना दुआओं से काम चलता है
ज़हर ये फिर भी सभी क्यों पिया करतें हैं
दफ्तर से ही हर ग़म मंसूब होता है
दिन रात दफ़्तर में तमाशा खूब होता है
रातों से भी लम्बे हैं जॉब के किस्से
फ़ायर्ड सुनाते हैं जफ़ा-ए-बॉस के क़िस्से
बेमुरव्वत है, बेवफ़ा है वो,
उस सितमगर का दिल से ख़ुदगर्ज़ का,
नाम ले ले के दुहाई दिया करते हैं
(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 12 मार्च 2023 । सिएटल
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