Monday, September 23, 2013

हमने देखी है कविताओं की परिभाषाएँ कई

हमने देखी है कविताओं की परिभाषाएँ कई
काट के पीट के इसके हिस्सों को नए आयाम न दो
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
कविता को कविता ही रहने दो कोई नाम न दो
कविता कोई गीत नहीं, कविता की रीत नहीं
एक ख़ामोशी है सुनती है कहा करती है
न ये बुझती है न रुकती है न ठहरी है कहीं
नूर की बूँद है सदियों से बहा करती है
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
कविता को कविता ही रहने दो कोई नाम न दो
मुस्कुराहट सी खिली रहती है कविताओं में कहीं
तो कहीं ग़म के प्याले से भरे रहते हैं
शब्द कुछ कहते नहीं, शब्दों के जुड़ने पे मगर
अनेकानेक अर्थ निकलते रहते हैं
सिर्फ़ एहसास है ये रूह से महसूस करो
कविता को कविता ही रहने दो कोई नाम न दो
(गुलज़ार से क्षमायाचना सहित)
23 सितम्बर 2013
सिएटल ।
513-341-6798

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1 comments:

Anonymous said...

सच! कविता अगर दिल को न छूए, उसके शब्दों और भावों का हम पर कुछ असर न हो, न हँसाये, न रुलाये, न जोश जगाये, तो वो केवल शब्दों की collection जैसी लगती है।

कुछ दिन पहले मैंने कविता की different categories के नाम और examples पढ़े - कविता, गीत, ग़ज़ल, नज़्म, कत'आ, त्रिवेणी, रुबाई, कवित्त, पद, दोहा, चौपाई, छंद, श्लोक, आदि। पढ़कर मन में यही बात आई कि category जो भी हो, form जो भी हो, शब्द हों या painting हो - अगर दिल को कहीं छू जाये, रूह उसे महसूस करे, तो वो poetry ही है।

इस बात से मुझे एक और different बात भी मन में आयी - हरिवंशराय बच्चन जी की कविता "एक नया अनुभव":

"मैनें चिड़िया से कहा, मैं तुम पर एक
कविता लिखना चाहता हूँ।
चिड़िया नें मुझ से पूछा, 'तुम्हारे शब्दों में
मेरे परों की रंगीनी है?'
मैंने कहा, 'नहीं'।
'तुम्हारे शब्दों में मेरे कंठ का संगीत है?'
'नहीं।'
'तुम्हारे शब्दों में मेरे डैने की उड़ान है?'
'नहीं।'
'जान है?'
'नहीं।'
'तब तुम मुझ पर कविता क्या लिखोगे?'
मैनें कहा, 'पर तुमसे मुझे प्यार है'
चिड़िया बोली, 'प्यार का शब्दों से क्या सरोकार है?'
एक अनुभव हुआ नया।
मैं मौन हो गया!"