मैं नहीं चाहता कि
हर गुल गुलाब हो
हर वक़्त बरसात हो
हर दिन त्यौहार हो
फिर क्यूँ चाहूँ कि
हर शख़्स हबीब हो
हर नज़्म लज़ीज़ हो
हर स्वप्न साकार हो
हर औलाद फौलाद हो
4 नवम्बर 2013
सिएटल । 513-341-6798
===============
हबीब = Friend, beloved]
हर गुल गुलाब हो
हर वक़्त बरसात हो
हर दिन त्यौहार हो
फिर क्यूँ चाहूँ कि
हर शख़्स हबीब हो
हर नज़्म लज़ीज़ हो
हर स्वप्न साकार हो
हर औलाद फौलाद हो
4 नवम्बर 2013
सिएटल । 513-341-6798
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हबीब = Friend, beloved]
1 comments:
छोटी सी कविता और बात गहरी है! मुझे लगता है कि यह चाहना कि हमारे साथ सब अच्छा हो, हमारे मन की हर बात सच हो - natural है। इस डर से कि मन की बात पूरी नहीं होगी, अपने लिए अच्छा चाहना बंद नहीं करना चाहिए। मगर दूसरों के लिए दुःख नहीं चाहना चाहिए। और जब कोशिश करने पर भी हमें ख़ुशी न मिल सके, तो उस situation को भी शांत मन से स्वीकार करना चाहिए। "दुःख और सुख के रास्ते, बने हैं सबके वास्ते, जो ग़म से हार जाओगे तो किस तरह निभाओगे..."
"गुलाब", "बरसात", "त्यौहार", "हबीब", "लज़ीज़", "साकार", 'फौलाद" - सब different शब्द हैं, मगर कविता में आपने उन्हें बहुत अच्छी तरह बुन दिया है। Very nice!
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