Monday, November 4, 2013

हर स्वप्न साकार हो

मैं नहीं चाहता कि
हर गुल गुलाब हो
हर वक़्त बरसात हो
हर दिन त्यौहार हो

फिर क्यूँ चाहूँ कि
हर शख़्स हबीब हो
हर नज़्म लज़ीज़ हो
हर स्वप्न साकार हो
हर औलाद फौलाद हो

4 नवम्बर 2013
सिएटल । 513-341-6798
===============
हबीब = Friend, beloved]

इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


1 comments:

Anonymous said...

छोटी सी कविता और बात गहरी है! मुझे लगता है कि यह चाहना कि हमारे साथ सब अच्छा हो, हमारे मन की हर बात सच हो - natural है। इस डर से कि मन की बात पूरी नहीं होगी, अपने लिए अच्छा चाहना बंद नहीं करना चाहिए। मगर दूसरों के लिए दुःख नहीं चाहना चाहिए। और जब कोशिश करने पर भी हमें ख़ुशी न मिल सके, तो उस situation को भी शांत मन से स्वीकार करना चाहिए। "दुःख और सुख के रास्ते, बने हैं सबके वास्ते, जो ग़म से हार जाओगे तो किस तरह निभाओगे..."

"गुलाब", "बरसात", "त्यौहार", "हबीब", "लज़ीज़", "साकार", 'फौलाद" - सब different शब्द हैं, मगर कविता में आपने उन्हें बहुत अच्छी तरह बुन दिया है। Very nice!