मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
यह छत से चूता पानी है
यह सड़क पे घुटनों तक गंदला पानी है
भीग जाओ तो बीमारी हो जाती है
कपड़ों में मोल्ड हो जाती है
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
कभी हँसता था, अब रोता हूँ
तकिये का लिहाफ़ भिगोता हूँ
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
कब क्या हुआ और क्यूँ हुआ
इसका तो कोई जवाब नहीं
लिखने को लिख दूँ बात अनेक
पर रिश्तों का होता हिसाब नहीं
सब बदलता है, सब बदलेगा
वक़्त भी एक न एक दिन बदलेगा
फिर एक दिन ठहाके गूँजेंगे
दीवाली के पटाखे फूटेंगे
गोया आज मेरे कोई पास नहीं
करता मुझे कोई याद नहीं
मेरे गीतों में अब भी सावन है
पर सावन नहीं मनभावन है
16 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
0 comments:
Post a Comment