जवानी में प्रियतम
बचपन में मामा
बहुरूपिया नहीं
कोई तुमसा प्यारा
घटते हो, बढ़ते हो
दिखते हो, छुपते हो
बहुरूपिया नहीं
कोई तुमसे ज़्यादा
सागर भी उछले
बादल भी चूमे
रक़ीबों ने भी चाहा
तो मिल के तुम्हें चाहा
होली हो, दीवाली हो
या हो राखी-भैया-दूज
हर तीज-त्योहार
हमने तुमसे बाँधा
सुहागिन भी पूजे
लड़कपन भी ताके
कशिश तुममें कैसी
समझ मैं न पाया
दाग भी हैं
और बेनूर भी हो
फिर भी ख़ूबसूरती का
मापदण्ड तुम्हें माना
भूखा भी रखते हो
मिटाते भी भूख हो
हर मज़हब ने तुमको
हबीब अपना जाना
नाम भी तुम्हारे
अनगिनत कई हैं
मैं लिखूँ, न लिखूँ
समझ गया ज़माना
23 जुलाई 2016
सिएटल | 425-445-0827
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रक़ीब = rivals in love
ताके = to gaze
हबीब = friend
1 comments:
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