Sunday, October 16, 2016

चुनाव हमारे हाथ में है



किसी के लिए

यह इमर्जेंसी हो सकती है

कि

पत्ते झड़ रहे हैं

टूट रहे हैं

बिखर रहे हैं


और किसी के लिए

यह भी कि

जो होना था

वही हो रहा है

विधि का विधान है

जो आया है, वो जाएगा

जो खिला है, वो झड़ेगा


और फिर मौसम भी है

कोई बेवक़्त तो नहीं गिर रहा


जब पत्तों का जीवन

इतना सुनियोजित है

पूर्वनिर्धारित है

फिर मेरा क्यूँ नहीं?

हमारा क्यूँ नहीं?


क्यूँ कोई

वक़्त से पहले 

चला जाता है

टूट जाता है

बिखर जाता है


क्या इसलिए कि

पत्ते 

निष्क्रिय रहे?

एक से चिपके रहे?

स्कूल गए,

नौकरी की,

घर बनाया,

कविता लिखी?


नहीं,

बल्कि इसलिए कि

पत्ते निष्काम हैं

हम कर्मलिप्त हैं


कर्म से सुख है

कर्म से दु: है


कर्म से प्रगति है

कर्म से दुर्गति है


चुनाव हमारे हाथ में है


16 अक्टूबर 2016

सिएटल | 425-445-0827



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