आज मिलेगा, कल मिलेगा
न जाने कब मिलेगा
सोच-सोच के मैं परेशान था
क्यूँ मिलता, कैसे मिलता
जब वो मुझमें ही विद्यमान था
जहाँ-जहाँ खोजा उसे
वहाँ-वहाँ साथ था
न आगे था, न पीछे था
सदा मेरे पास था
न खोया था, न पाया है
भेद अब समझ आया है
मैं था, मैं हूँ
बाक़ी सब माया है
माया से काया है
काया ने सब जुटाया है
मुझे तुमसे
तुम्हें मुझसे मिलवाया है
परिजनों से आशीर्वाद दिलवाया
प्रियजनों को गले लगवाया है
गाने सुनाए, गीत गवाए
सफ़ेदी में रंग लाया है
यह वाहन है
मन-भावन है
क्यूँ न इसका मान करूँ
क्यूँ न इसका गुणगान करूँ?
यह है तो मैं हूँ
मैं हूँ तो यह है
इन दोनों के मिश्रण को ही
कहते हम जीवन हैं
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काया एक रेडियो
प्राण इसकी बैटरी
चालू करो
रोशनी जले
खटर-पटर
कुछ आवाज़ करे
यदि
करें ध्यान
रखें संयम
तो हो सकता है
कोई स्टेशन लगे
उसी को कहते आत्मज्ञान हैं
कोई गीत सुने
कोई समाचार
तो कोई खेलकूद ही समझ पाता है
जैसी-जैसी जिसकी रूचि
वैसा-वैसा स्टेशन पकड़ पाता है
पर हर सुनने वाले का चित्त आनन्दमय हो जाता है
8 अक्टूबर 2016
सिएटल | 425-445-0827
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