तू खोजता ही रहता है
रोशनी का सुराग़
कि कहीं तो होगा वो
ज्योतिपुंज विशाल
और अनदेखा कर देता है
जो दिखता कई बार
झाँक के तेरी खिड़की से
कहता - उठ जाग
और नहीं कुछ तो देख ले
सर उठा के आसमान
क्यूँ निराश भटकता है
इसे ही ले आस मान
चंदा-तारे-पक्षी-ब्रह्माण्ड
सबकी एक सरकार
हर चार साल में नहीं बदलती
इनकी सरकार
बार-बार की चिंता-फ़िकर
रूसा-रूसी छोड़ दे
हुक्म रजाई चलना तुझको
उससे नाता जोड़ ले
23 अक्टूबर 2016
सिएटल | 425-445-0827
1 comments:
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 अक्टूबर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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