Sunday, October 23, 2016

हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


मोम जलाना, बत्ती जलाना

हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


बटन से जलती-बुझती लड़ियाँ सारी

लगती मनभावन, लगती प्यारी

पर उनमें दीप जलाने का रोमांच कहाँ है?

घी-तेल में बाती डूबोने का अहसास कहाँ?

प्रज्वलित दीपों से भरा वो थाल कहाँ है?

झुक के देहरी पे धरने का भाव कहाँ है?


समय बदला, देश भी बदला

वेशभूषा, परिवेश भी बदला

पर क्या जीवन का उद्देश्य भी बदला?

पुरखों का दिया संदेश भी बदला?


अंधेरा चाहे बढ़ भी जाए

घनघोर-घनेरा हो भी जाए

दीप सदा तुम जलाए रखना

दीप की लौ में ऐसी शक्ति 

भय भगाए, सौहार्द बढ़ाए

आँच में इसके ऐसी गरमी

माँ के हाथ की याद दिलाए 


सूरज उगता-ढलता जाए

चाँद भी घटता-बढ़ता जाए

एक दीप तुम्हारे साथ रहेगा

दीप सदा तुम जलाए रखना


दीप सदा तुम जलाए रखना


मोम जलाना, बत्ती जलाना

हर द्वार पे प्रिये तुम दीप जलाना


23 अक्टूबर 2016

सिएटल | 425-445-0827





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