Wednesday, May 27, 2020

डर

पहले 
लावारिस वस्तुओं से ख़तरा था
अब
एक-दूसरे से डर लगता है

डर स्वाभाविक है
डरना हमारे डी-एन-ए में है

लेकिन 
हम मिल-जुल कर 
विषम परिस्थितियों से लड़े

हमने मिल-जुल कर
खेत-खलिहान बनाएँ
गाँव बसाएँ
कारख़ाने खोले
दुकानें चलाईं

हम 
पशुओं से 
भिन्न हुए 
मिल-जुल कर

अब
जब मेल-जोल ही बन्द है
डर है कि कहीं हम पशु न बन जाए

राहुल उपाध्याय । 27 मई 2020 । सिएटल

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