Wednesday, October 25, 2023

तुम गई थी मुझको छोड़ के

तुम गई थी मुझको छोड़ के

सवेरे गली के जिस मोड़ पे

उस मोड़ की मैं पूजा करूँगा

उसी को मैं अपना मंदिर कहूँगा 

वादे का कोई औचित्य नहीं था

वादे की कोई दरकार नहीं थी

वादा किसी ने माँगा नहीं था

वादा तुम्हें देना नहीं था 

फिर भी तुमने वादा किया है 

चंद घंटों को जीवन दान दिया है

कि आती हूँ मैं फिर दो बजे तक

उसके आगे कुछ सुना नहीं था

उसके आगे कुछ सुनना नहीं था

यही थे मेरे अठारह अध्याय 

यही थे मेरे सप्त सोपान

बिन माँगे मोती मिले हैं 

मुझ जैसे के भाग खुले हैं 

दूर सघन परदेस में भी 

दिल से दिल के तार जुड़े है


राहुल उपाध्याय । 26 अक्टूबर 2023 । लंगकावी (मलेशिया)



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