अब हम कुत्तों को भौंकने नहीं देते हैं
उनकी प्रजनन शक्ति को निष्क्रिय कर देते हैं
पूरी ज़िंदगी जीने नहीं देते हैं
दरियादिली से उन्हें अपनी मर्ज़ी से सुला देते हैं
फ़्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के लिए
नारे लगते हैं
आंदोलन चलते हैं
और जिन्हें हम अपने बच्चे मानते हैं
परिवार का सदस्य कहते हैं
गले लगाते हैं
मल उठाने को तत्पर रहते हैं
उन्हें ही भौंकने से रोक देते हैं
हमें अपना दोगलापन दिखता नहीं है
चाहे फिर वो घर में काम करनेवाला रामू हो
या उसी की उम्र का अपना बेटा
या भतीजी
या दफ़्तर का चपरासी
या कम्पनी का चेयरमैन
या महबूबा
हम श्रेणियों में जीवन बीताने के आदी हो गए हैं
इंसान को देखकर
कैमिकल्स रिएक्ट करते हैं
रंग बदलते हैं
राहुल उपाध्याय । 26 जुलाई 2024 । ऐम्सटरडम
1 comments:
कटु सत्य।
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