माना जनाब ने स्वीकारा नहीं
तुम्हारा साथ गवारा नहीं
मुफ़्त में बन के, बैठे हो तनके,
वल्ला जवाब तुम्हारा नहीं
हारे का चलन है गुलामी
लेते हैं चमचों की सलामी
गुस्सा ना कीजिए जाने भी दीजिए
गद्दी तो गद्दी तो दीजिए साहब
छोटा-मोटा कारोबार तुम्हारा
जैसा भी है अब है तुम्हारा
घर जाइए, कारोबार देखिए
दिल्लगी ना दिल्लगी ना कीजिये साहब
माशा अल्ला कहना तो मानो
बन जाए बिगड़ा ज़माना
थोड़ा हँसा दिया, थोड़ा रूला दिया
अलविदा तो अलविदा तो कीजिये साहब
(मजरूह से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 9 नवम्बर 2020 । सिएटल
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