चुनाव में हारनेवालों को
चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ
हार की अंधियारी मंज़िल में
चारों ओर सियाही
आधी राह में ही रुक जाए
इस मंज़िल का राही
वोटों पर मरनेवालों को
चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ
बहलाए जब दिल ना बहले
तो ऐसे बहलाएँ
झूठ ही तो है जीत की दौलत
ये कहकर समझाएँ
अपना मन छलनेवालों को
चैन कहाँ, हाय, आराम कहाँ
(राजिन्दर कृष्ण से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2020 । सिएटल
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वाह
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