कभी पलकों पे आँसू हैं,
कभी लब पे शिकायत है
मगर ऐ अमेरिका फिर भी
मुझे तुझसे मोहब्बत है
जो आता है, वो रोता है,
ये दुनिया सूखी-साखी है
अगर है ऐश तो घर पे,
जहाँ मनती दीवाली है
मगर इण्डिया नहीं जाना,
अभी बनना सिटीज़न है
जो कमाता हूँ, वो खप जाए,
बड़ी थोड़ी कमाई है
शेयर पे हाथ भी मारे,
मगर पूँजी गवाई है
बने मिलियन्स थे ये सपने,
मगर अब कर्ज़ किस्मत है
गराज में कार है, लेकिन
मैं दफ़्तर जाऊँ बस लेकर
स्कूल के बच्चे की माफ़िक़,
लदे बस्ता मेरी पीठ पर
फ़र्क बस इतना कि
माँ नहीं, बीवी बाँधती टिफ़िन है
(निदा फ़ाज़ली से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 9 दिसम्बर 2011 । सिएटल
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