Saturday, November 7, 2020

जीते जो जीते

काहे को रोए

जीते जो जीते

सफ़ल हुई 

वोटर की कामना


मूँछें तेरी काहे नादान

लटक गई डाल समान

समा जाये इस में तूफ़ान

कर तेरा जिगर आसमान

जाने क्यों तूने ये

झूठे सपन संजोए


पद छूटे तो ये बाक़ी 

जीवन और सुंदर बने

पढ़े-लिखे, बाँटे जो भी

ज्ञान तू बाँट सके 

काहे को बोझा ये

सर पे तू ढोए


कहीं पे है दुख की छाया

कहीं पे है ख़ुशियों की धूप

बुरा भला जैसा भी है

यही तो है बगिया का रूप

फूलों से, कांटों से 

माली ने हार पिरोए


(आनन्द बक्षी से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 7 नवम्बर 2020 । सिएटल 


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