सुन मेरे बंधु रे,
सुन मेरे मितवा
सुन मेरे साथी रे
होता तू विजेता,
मैं होती अमर लता तेरी
तेरे गले माला बन के,
पड़ी मुसकाती रे
वोट कहे तू अनिश्चित,
बाकी अभी गिनती
लॉयर-वायर कर तू अपने,
देर हुई जाती रे
(मजरूह से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2020 । सिएटल
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