Wednesday, November 18, 2020

ये है सत्ता भोगी

कुछ नहीं समझ आता 

जब रोग ये लग जाता

ये है सत्ता भोगी

इसे दफ़ा तो कराओ

जाओ जाओ जाओ

कोई इसे तो भगाओ


कुछ समझा 

कुछ समझ न पाया

देश वालों का मन पक आया

और कभी सोचा जाएगा 

क्या कुछ खोया 

क्या कुछ पाया

जा तन लागे वो तन जाने

ऐसी है इस रोग की माया

इसकी इस हालत को और न बढ़ाओ 


सोच रहा हूँ जो 'जो' न होता

ख़ुशियों भरा जग आज न होता 

लोकतंत्र का एहसास न होता

गुल गुलशन गुलज़ार न होता

होने को कुछ भी होता पर

ये सुंदर संसार न होता

मेरे इन ख़यालों में

तुम भी डूब जाओ


यारो है ये क़िस्मत का मारा

सत्ता रोग जिसे लग जाता है

लोक-लाज का उसे होश नहीं है

अपनी लौ में रम जाता है

हर पल ख़ुद ही ख़ुद हँसता है

हर पल कुछ न कुछ बकता है

ये रोग लाइलाज़ सही फिर भी कुछ कराओ

कोई इसे तो भगाओ

इसकी कुर्सी तो हटाओ

और नहीं कुछ तो इसे अहसास तो दिलाओ

कोई कुर्सी तो हटाओ


(संतोष आनन्द से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 13 नवम्बर 2020 । सिएटल 

https://youtu.be/fyG6iBildhY


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