वोट होते न ख़फ़ा
आप हमारे होते
और न ग़ैरों की तरह
आज नकारे होते
आपके चरित्र में पहले ही से न कोई दम है
और कुछ आप की फ़ितरत में वफ़ा भी कम है
वरना जीती हुई बाज़ी तो ना हारे होते
हम पक गए हैं किसी को बता भी न सके
सामने जाम था और जाम उठा भी न सके
काश चारों ओर लगे न ये नारे होते
दम घुटा जाता है सीने में फिर भी ज़िंदा हैं
तुम से क्या हम तो सिस्टम से भी शर्मिन्दा हैं
हट ही जाते जो न वकीलों के सहारे होते
(इंदीवर से क्षमायाचना सहित)
राहुल उपाध्याय । 6 नवम्बर 2020 । सिएटल
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