मैं किसी भी बात पर
इतना उदास नहीं हुआ
जितना आज हूँ
कुछ अच्छा करने का
मन नहीं है
कुछ अच्छा हो
ऐसी भी इच्छा नहीं है
चाहता हूँ कि
बस वो जो चाहे वही हो
उसके साथ सब अच्छा हो
साँस रोके बैठा हूँ कि
जो हो अच्छा हो
इतना बदलाव कैसे?
क्यों इतना लगाव है किसी से?
और यह भी ग़म मुझे खाए जा रहा है
कि मैं कुछ कर नहीं पाऊँगा उसके लिए
जो भी करना है
उसे ही करना है
उसे ही झेलना है
तो यह सब क्या है?
दिखावा है?
ड्रामेबाज़ी है?
क्या उदास होना भी
कोई गुनाह है?
क्यूँ इसकी जवाबदेही
आवश्यक है?
न जाने क्यों मन
बहुत बहुत बहुत बहुत उदास है
मैं उदासी को
और उदासी मुझे देख रही है
बाहर बर्फ़ है
कहीं जा भी नहीं सकता
मन बहला नहीं सकता
टीवी का भी मन नहीं
अलेक्सा भी चुप है
पर्दे खींच लिए हैं
सारी लाइटें जला ली हैं
रात भयावह नहीं है
बस उदास है
शांत है
सन्नाटा है
राहुल उपाध्याय । 29 नवम्बर 2022 । सिएटल