कहीं दूर चला जाऊँ
तो घर आना अच्छा लगता है
घर से दूर चला जाऊँ
तो घर आना अच्छा लगता है
रमता जोगी
बहता दरिया
चल पड़े जिधर
चलती धारा
घूम-फिर के मिले
समंदर खारा
उड़े गगन
जब दहके पारा
फिर मिलता है
वही किनारा
जहाँ से चला था
लौंग लश्कारा
राहुल उपाध्याय । 20 नवम्बर 2022 । सिएटल
2 comments:
क्योंकि, लौट के आना है यहीं हमको
सरल सहज भाव।
सुंदर सृजन।
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