Sunday, November 20, 2022

घर आना अच्छा लगता है

कहीं दूर चला जाऊँ 

तो घर आना अच्छा लगता है 

घर से दूर चला जाऊँ 

तो घर आना अच्छा लगता है 


रमता जोगी 

बहता दरिया 

चल पड़े जिधर

चलती धारा

घूम-फिर के मिले

समंदर खारा

उड़े गगन 

जब दहके पारा

फिर मिलता है 

वही किनारा

जहाँ से चला था

लौंग लश्कारा


राहुल उपाध्याय । 20 नवम्बर 2022 । सिएटल 




इससे जुड़ीं अन्य प्रविष्ठियां भी पढ़ें


2 comments:

Anita said...

क्योंकि, लौट के आना है यहीं हमको

मन की वीणा said...

सरल सहज भाव।
सुंदर सृजन।