आज मेरा जन्मदिन है
और इतने तोहफ़े मिले कि
मन ख़ुशी से सराबोर है
इसने भी फ़ोन किया
उसने भी फ़ोन किया
एक का तो फ़ोन मैं ले भी नहीं पाया
और उसका तो टेक्सट भी आ गया
जिससे मेरा दूर-दूर का वास्ता नहीं
टेक्सट आ गया है
नूर आ गया है
नहीं तो
चराग़ों से लौ जा रही थी
ये फ़ोन
ये टेक्स्ट
जन्मदिन के नहीं थे
उन्हें तो पता भी नहीं
कि कब है
बस यूँही
फ़ोन आते रहे
दिल लुभाते रहे
हम बतियाते रहे
इनसे बड़ा उपहार
और क्या हो सकता है
कि किसी का मन
बिना बात के
बात करने को चाहे
राहुल उपाध्याय । देवोत्थानी एकादशी, सम्वत् 2079 । सिएटल
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