नभ नापने वाले
बता क्या ढूँढ रहा है
आराम से तू सोच ले
सब तुझमें छुपा है
उलझन है अगर कोई
उलझन न बढ़ाओ
अपने ही जिगर में कहीं
उलझन को मिटाओ
आकाश में जाकर किसे
कोई मिली दवा है
गर ग़म है कहीं जग में
तुम ग़म को भगाओ
सरगम में बड़ी ताक़त
सरगम को सुनाओ
आवाज़ ने, अल्फ़ाज़ ने
किया सबका भला है
चलाकर तू कश्ती तेरी
कर ग़म को किनारा
ग़म और ख़ुशी दोनों ने
है तुझको सँवारा
दोनों के इस मेल ने
हाँ तुझको गढ़ा है
जो जिसको मिला जितना
वो उसका ख़ुदा है
जो हाथ से ख़ाली मगर
वो अपना ख़ुदा है
आग़ाज़ से अंजाम तक
बस ये ही दिखा है
राहुल उपाध्याय । 14 नवम्बर 2022 । सिएटल
1 comments:
जो हाथ से ख़ाली मगर
वो अपना ख़ुदा है
सही कहा है, मनमुख और सन्मुख होने में यही फ़र्क़ है
Post a Comment