रात को जो तकिये से
बिस्तर में बात करते हैं
वे अपना ग़म ग़लत
ऐसे ही किया करते हैं
वे डरते नहीं थे
अब डरते हैं
दुनिया भर की दलीलों से
अब डरते हैं
जिसने प्यार किया
उसी ने दिल तोड़ दिया
अब सबसे, दूर से ही
हाथ जोड़ लिया करते हैं
ज़िन्दगी भर
रदीफ-क़ाफ़िये में उलझे रहे
नहीं बनी, तो नहीं बनी
जिसे ग़ज़ल कहा करते हैं
ये इल्म है मेरा कि
तजुर्बा है मेरा
जो जो चाहे वो समझे
हम तो बस अर्ज़ किया करते हैं
राहुल उपाध्याय । 17 नवम्बर 2022 । सिएटल
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