Tuesday, November 22, 2022

वो जो ख़्वाब थे

वो जो ख़्वाब थे

मुझे तड़पा गए

ये जो ख़्वाब हैं

मुझे बहला रहे


वफ़ाएँ नहीं काफ़ी 

जफ़ाएँ भी हैं काम आती

तमन्नाओं की दुनिया में 

जफ़ाएँ भी हैं काम आती

वो जो कल तक साथ थे अपने

नहीं हैं आज वो अपने 

जिन्हें पूजा किया हमने

नहीं हैं आज वो अपने 

ये सब कुछ जान के

दामन चाक है


बहारों का गुलिस्ताँ से

कोई इकरार नहीं होता

वो आए या न फिर आए

कोई इकरार नहीं होता

तबस्सुम आज लबों पे है

मगर ये आनी-जानी है 

अगर कल ग़म कोई आए

भरेगी आँख पानी से

भरम बस है यही

उजाले आ रहे 


कमी थी लाख हाँ मुझमें 

नहीं था ज्ञान हाँ मुझमें 

कहा था कब कहाँ मैंने 

कि सारा ज्ञान है मुझमें 

सही थे तुम सदा देखा

ख़ुदा थे तुम ख़ुदा देखा

निगाहें फेरना तो क्या 

तुम्हें दिल में सदा देखा

पहर वे आज क्यूँ 

मुझे याद आ गए


राहुल उपाध्याय । 22 नवम्बर 2022 । सिएटल 


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