वो जो ख़्वाब थे
मुझे तड़पा गए
ये जो ख़्वाब हैं
मुझे बहला रहे
वफ़ाएँ नहीं काफ़ी
जफ़ाएँ भी हैं काम आती
तमन्नाओं की दुनिया में
जफ़ाएँ भी हैं काम आती
वो जो कल तक साथ थे अपने
नहीं हैं आज वो अपने
जिन्हें पूजा किया हमने
नहीं हैं आज वो अपने
ये सब कुछ जान के
दामन चाक है
बहारों का गुलिस्ताँ से
कोई इकरार नहीं होता
वो आए या न फिर आए
कोई इकरार नहीं होता
तबस्सुम आज लबों पे है
मगर ये आनी-जानी है
अगर कल ग़म कोई आए
भरेगी आँख पानी से
भरम बस है यही
उजाले आ रहे
कमी थी लाख हाँ मुझमें
नहीं था ज्ञान हाँ मुझमें
कहा था कब कहाँ मैंने
कि सारा ज्ञान है मुझमें
सही थे तुम सदा देखा
ख़ुदा थे तुम ख़ुदा देखा
निगाहें फेरना तो क्या
तुम्हें दिल में सदा देखा
पहर वे आज क्यूँ
मुझे याद आ गए
राहुल उपाध्याय । 22 नवम्बर 2022 । सिएटल
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