ख़ाक में मिल कर फ़ना सब हो गए
बादशाह और पीर सारे रो रहे
आग पे पा ली विजय है आपने
हाथ से रोका प्रलय है आपने
फिर परास्त मौत से क्यूँ हो गए
जाल बुनकर जाल से है कौन बचा
जाल में अपने ही ख़ुद आदमी फँसा
ख़ुद ही मौत के सामाँ हो गए
आग में पानी नहीं है, मान लो
मौत से लड़ना नहीं है, छोड़ दो
कहते-कहते तुमको बरसों हो गए
राहुल उपाध्याय । 18 नवम्बर 2022 । सिएटल
2 comments:
सुन्दर
बहुत सुंदर।
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