न मैं आनंद
ना समीर
फिर भी वह मुझे याद करेगी
जब भी पढ़ेगी कोई कविता
जब भी लिखेगी कोई रचना
जब भी सुनेगी पुराने गाने
जब भी देखेगी कोई स्टेटस
जब भी बूझेगी कोई पहेली
जब भी तोड़ेगी शब्दों के हिज्जे
खाएगी सलाद
चलेगी दो क़दम
बैठेगी ज़ूम पर
जाएगी परदेस
मैं रहूँ ना रहूँ
मेरी याद रहेगी
इसमें, उसमें, उसमें, उसमें, उसमें
सबकी साइकिल का मैं
तीसरा पहिया ही बन कर रहा
ज़िम्मेदारी कम होती है
और ज़रूरत होने पर
काम भी आ जाता हूँ
राहुल उपाध्याय । 29 नवम्बर 2022 । सिएटल
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