Nursery में Nurse होती नहीं है
Candidates Candy देते नहीं हैं
भाषा में है इतना दोगलापन
कि God भी गोद लेते नहीं हैं
नाम बड़े और दर्शन छोटे
सत्यम वाले निकले चोट्टे
यह सब जानते हुए भी
माँ-बाप
बाल-बच्चों के नाम
अनाप-शनाप रख देते हैं
West वाले Easter मनाएँ!
East वाले West को पूजें!!
Confusion ही Confusion है
नागपुर में नाग नहीं
आगरा में आग नहीं
Indiana की तो बात ही छोड़ो
Redmond में भी हीरा लाल नहीं
Wall Street में Wall नहीं है
Facebook भी कोई किताब नहीं है
हर तरफ़ हाहाकार मची है
ना-ना करने की होड़ लगी है
हर तरफ़ संग्राम यही है
मैं जो कहूँ, बस वही सही है
जबकि
शब्दों से बड़ा कोई हथियार नहीं है
शांति से हुआ कोई War नहीं है
शब्दों में भला प्यार कहाँ है?
शब्दों से बड़ा कोई मतलबी नहीं है
शब्द एक और मतलब कई हैं
26 मार्च 2016
सिएटल | 425-445-0827
7 comments:
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क्या यह कविता है?
या कुछ भी लिख कर चेप देने के अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है?
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Very nice poem.
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कुछ भी लिख देना कविता नहीं होती, फिर चाहे वह लक्षणा या व्यंजना में क्यों न हो।
हिंदी भाषा में तो अनेकार्थी, समानार्थी शब्द होते हैं, और सम्भवतः अन्य भाषाओँ में भी।
उन पर विवेचना प्रस्तुत करना अलग है और बेमतलब अनाप-शनाप ( बे सिर-पैर की ) लिखना अलग।
मैं नहीं सोचती कि राहुल जी इस पर अपनी कोई व्याख्या प्रस्तुत करेंगे।
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हास्य रस में नामों की विसंगतियों को लेकर काका हाथरसी की कुछ रचनाएँ हैं किन्तु उनमें विरोध और विसंगति गुदगुदाने की तरह सामने लाई जाती थी. विवेच्य रचना में हास्य भी नहीं है.
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Kya baat hai sir. Very nice
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राहुलजी वाह! वाह! आपकी
कविता का अर्थ दशकों से सही है,
इस लिये आज भी लगती नयी है!
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Good. liked it :)
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