Saturday, March 26, 2016

शब्द एक और मतलब कई हैं


Nursery में Nurse होती नहीं है
Candidates Candy देते नहीं हैं
भाषा में है इतना दोगलापन
कि God भी गोद लेते नहीं हैं

नाम बड़े और दर्शन छोटे 
सत्यम वाले निकले चोट्टे
यह सब जानते हुए भी
माँ-बाप
बाल-बच्चों के नाम
अनाप-शनाप रख देते हैं

West वाले Easter मनाएँ!
East वाले West को पूजें!!

Confusion ही Confusion है
नागपुर में नाग नहीं 
आगरा में आग नहीं 
Indiana की तो बात ही छोड़ो
Redmond में भी हीरा लाल नहीं 

Wall Street में Wall नहीं है
Facebook भी कोई किताब नहीं है
हर तरफ़ हाहाकार मची है
ना-ना करने की होड़ लगी है
हर तरफ़ संग्राम यही है
मैं जो कहूँ, बस वही सही है
जबकि
शब्दों से बड़ा कोई हथियार नहीं है
शांति से हुआ कोई War नहीं है

शब्दों में भला प्यार कहाँ है?
शब्दों से बड़ा कोई मतलबी नहीं है
शब्द एक और मतलब कई हैं

26 मार्च 2016
सिएटल | 425-445-0827

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7 comments:

Rahul Upadhyaya said...

From email:

क्या यह कविता है?

या कुछ भी लिख कर चेप देने के अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता है?

Rahul Upadhyaya said...

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Very nice poem.

Rahul Upadhyaya said...

From email:

कुछ भी लिख देना कविता नहीं होती, फिर चाहे वह लक्षणा या व्यंजना में क्यों न हो।

हिंदी भाषा में तो अनेकार्थी, समानार्थी शब्द होते हैं, और सम्भवतः अन्य भाषाओँ में भी।

उन पर विवेचना प्रस्तुत करना अलग है और बेमतलब अनाप-शनाप ( बे सिर-पैर की ) लिखना अलग।

मैं नहीं सोचती कि राहुल जी इस पर अपनी कोई व्याख्या प्रस्तुत करेंगे।

Rahul Upadhyaya said...

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हास्य रस में नामों की विसंगतियों को लेकर काका हाथरसी की कुछ रचनाएँ हैं किन्तु उनमें विरोध और विसंगति गुदगुदाने की तरह सामने लाई जाती थी. विवेच्य रचना में हास्य भी नहीं है.

Rahul Upadhyaya said...

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Kya baat hai sir. Very nice

Rahul Upadhyaya said...

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राहुलजी वाह! वाह! आपकी
कविता का अर्थ दशकों से सही है,
इस लिये आज भी लगती नयी है!

Rahul Upadhyaya said...

From WhatsApp:

Good. liked it :)