Wednesday, August 10, 2016

रास्ते रास आए तो ऐसे


रास्ते रास आए तो ऐसे
जैसे पिकनिक पे जा रहे हैं
न आए तो ऐसे
जैसे मय्यत में जा रहे हैं

जो दिखती है राह 
वही सूझती है राह
वरना धूल में तो लठ्ठ 
कब से मारे जा रहे हैं

समझने की बातें 
समझता है कौन
सब एक दूसरे को
कुछ-न-कुछ समझाए जा रहे हैं

यदि हम होते
तो दंगा न होता
दावा करने वाले
दावानल बढ़ाए जा रहे हैं

कोई पढ़े, न पढ़े 
किसी को भाए, न भाए
कवि-हृदय
कविता बनाए जा रहे हैं

10 अगस्त 2016
सिएटल | 425-445-0827
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दावानल = forest fire

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2 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 12 अगस्त 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

दिगम्बर नासवा said...

बहुत ख़ूब लिखा है ... पर कोई कुछ भी कहे जो सच है वो है ...।