चलो मिलाऊँ तुम्हें सब्ज़बाग़ों से
सच्चाई से परे शीरीं ख़्वाबों से
अब जो भी होगा सब अच्छा ही होगा
दर्शन बरसाऊँ ऐसी बातों से
जनम-जनम का साथ है तुम्हारा-तुम्हारा
आस बँधाऊँ ऐसे गानों से
कड़वे वचन न अब कोई बोलेगा
वादे करवाऊँ लड़ने वालों से
ख़ुद के जीवन का कोई ठिकाना नहीं
मार्गदर्शन कर रहा हूँ कई सालों से
राहुल उपाध्याय | 2 अगस्त 2016 | सिएटल
====
सब्ज़बाग़ = काल्पनिक हरियाली
शीरीं = मीठी
0 comments:
Post a Comment