चाहे कितना भी दूर हो
चाँद आसपास ही लगता है
ये घर हो या वो घर हो
हर घर की खिड़की से
झाँकता रहता है
हम देखते हैं इसे
ये देखता है हमें
रिश्ता कोई जाना
पहचाना लगता है
जानते हैं कि इसे हम
अपना न बना पाएँगे
फिर भी ये कहाँ
पराया लगता है
न समय का है पाबंद
न देता है रोज़ हाजरी
फिर भी बेसहारों का
सहारा लगता है
तुम भी एक दिन दूर के चाँद हो जाओगे
तब और भी क़रीब हो जाओगे
जबकि आज खींचा-खींचा सा
हमारा याराना लगता है
8 अगस्त 2016
सिएटल । 425-445-0827
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